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गरीब, चौरासी बंधन कटे, कीनी कलप कबीर। 
भवर चतुरदश लोक सब, टूटे जम जंजीर।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड कहाय। 
सो तौ एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।
गरीब, शब्द स्वरूप साहिब धनी, शब्द सिंध सब मांहि।
 बाहर भीतर रमि रह्या, जहाँ तहां सब ठांहि।।
गरीब, जल थल पथ्वी गगन में, बाहर भीतर एक।
 पूरणब्रह्म कबीर हैं, अबिगत पुरूष अलेख।। 
गरीब, सेवक होय करि ऊतरे, इस पथ्वी के मांहि। 
जीव उधारन जगतगुरू, बार बार बलि जांहि।।

      वाणियों में परमात्मा कबीर जी के कलयुग में प्राकाट्य का प्यारा वर्णन है जो इस प्रकार हैः-

      परमात्मा कबीर जी की महिमा का वर्णन है। कहा है कि कबीर परमेश्वर बंदी छोड़ हैं। अनंत करोड़ ब्रह्मण्डों में बन्दी छोड़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। बन्दी छोड़ का अर्थ है कैदी को कारागार से छुड़ाने वाला। हम सब जीव काल निरंजन की कारागार में बंदी (कैद) हैं। इस बंदीगृह से केवल कबीर परमात्मा की छुड़ा सकते हैं। इसलिए सब ब्रह्मण्डों में परमात्मा कबीर जी एकमात्रा बन्दी छोड़ हैं। केवल कबीर परमेश्वर जी ही एकमात्र हैं जिनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ।

    जो परमात्मा कबीर जी की शरण में आ जाते हैं, कबीर परमेश्वर जी की कृपा से चौरासी लाख योनियों में जाने वाले बंधन कट जाते हैं। (कर्मों के कारण बंधन होता है। वे पाप कर्म परमात्मा कबीर जी की कृपा से नष्ट हो जाते हैं। सतनाम के जाप से पाप नाश होते हैं।)

        परमात्मा कबीर जी (शब्द स्वरूपी) अविनाशी रूप हैं। उनकी (शब्द सिंधु) वचन शक्ति समुद्र की तरह अथाह है। जीव एक तुम्बे की तरह है जो समुद्र में पड़ा है। उसके अंदर भी जल बाहर भी जल होता है। ऐसे परमात्मा कबीर जी की शक्ति के अंदर सब ब्रह्मण्डों के जीव हैं। परमात्मा इस प्रकार सर्वव्यापक कहा जाता है। कबीर जी पूर्णब्रह्म हैं।
(अविगत पुरूष अलेख) दिव्य अवर्णनीय परमेश्वर है।

       परमात्मा कबीर जी वेदों में बताए उनकी महिमा के अनुरूप कार्य करते हैं। ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 82 मंत्र 1.2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 86 मंत्र 26.27, ऋग्वेद मण्डल नं. 9 सूक्त 54 मंत्र 3, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 1, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मंत्र 2, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 16.20 आदि-आदि अनेकों मंत्रों में कहा है कि परमात्मा (कविर्देव) कबीर परमेश्वर है जो आकाश में सबसे ऊपर वाले स्थान पर बैठा है। वहाँ से गति करके आता है। अच्छी आत्माओं को मिलता है। उनको उपदेश देता है। तत्वज्ञान का प्रचार अपनी (कविर्गिर्भिः) कबीर वाणी द्वारा (काव्येन) कवित्व से यानि कवियों की तरह साखी, शब्द, चौपाईयों द्वारा बोल-बोलकर करता है। जिस कारण से (कविनाम पदवी) कवियों में से प्रसिद्ध कवि की उपाधि प्राप्त करता है। जैसे परमात्मा कबीर जी को ‘‘कवि’’ भी कहा जाता है। परमात्मा कबीर जी पृथ्वी पर कवियों की तरह आचरण करता हुआ विचरण करता है। परमात्मा कबीर जी अपनी वाणी बोलकर भक्ति करने की प्रेरणा करता है। भक्ति के गुप्त नाम का आविष्कार करता है।

      - पूर्ण गुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज🙏🙏
अवश्य देखिये साधना टी. वी. शाम 7:30 बजे।